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फलसफा महब्बत का – Contest

Apni Aawaz
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महब्बत, इश्क, प्यार, प्रेम, आशिकी, स्नेह, आकर्षण, लगावट, ममत्व, बहनापा, भ्रातत्व, दोस्ती, याराना और न जाने क्या-क्या नाम दिए गए है दो लोगों के रिश्तों के बीच रिश्ते को.
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पर रिश्तो में अक्सर खटास आ जाती है जब हम प्यार के बदले प्यार या प्यार जैसा कुछ भी चाहते है. मेरा अपना मानना है कि सच्चा प्यार सिर्फ एकतरफा ही हो सकता है. जो हमें मीरा, मजनू या शाहजहाँ आदि के प्रेम मे मिलता है.
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मीराबाई ने प्रेम कृष्ण (ईश्वर के एक रूप) से किया जिसे वो कभी भी प्रत्यक्ष रूप से पा नहीं सकती थी फिर भी वो उनकी दीवानी हुई और कृष्ण के ऊपर अपना सबकुछ न्योछवर कर दिया.
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मुमताज़ से शाहजहाँ का प्रेम ताजमहल आज भी बतौर ‘महब्बत का गवाह’ खड़ा है. किसी की मौत के बाद उसे कोई क्या देगा या उसकी महब्बत को क्या समझेगा, इन सबसे परे शाहजहाँ ने अपने इश्क को जिन्दा रखने के लिए मुमताज़ की कब्र को एक शानदार मुकाम दिया.
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मजनू के अथाह प्रेम की झलक आप उसके उस जवाब से लगा सकते है जो उसने एक नमाज पढ़ते हुए आदमी को तब दिया था जब मजनू लैला को तलाश करने में मगन नमाज़ी के सामने से गुज़रा तो वो नमाज़ी क्रोधित हो गया.

    “लैला की जुस्तजू में कुछ और सूझता नहीं मुझको
    देख कैसे लिया तूने, खुदा की बंदगी में मुझको”

ऐसे ही तमाम महब्बत के अफ़साने मेरे ज़ेहन में इस कदर घर कर गए कि एकतरफा महब्बत में ही मुझे असल महब्बत नज़र आती है.
इस बाबत कुछ अशार पेश-ए-नजर है;
falsafa muhabbat2
इस लेख का उद्देश्य उपदेश या आन्दोलन नहीं है बस आज की इस व्यस्त दुनिया में प्यार की या तो कमी हो गई है या अब ये बाज़ार में बिकने लायक वस्तु हो गई है. उपरोक्त उदाहरणों की प्रष्ठभूमि क्या है? इनका इतिहास क्या है? या इनके पीछे कोई साज़िश या कुछ और है मैंने उन्हें मद्दे नज़र न रख कर केवल और केवल उनके प्यार को श्रेष्ठ और उचित माना है. और यही सोच कर कुछ जज्बातों को यहाँ पेश किया है आशा है लोग इसे अन्यथा या विवाद का विषय नहीं बनायेंगे ये सिर्फ एक मेरे व्यक्तिगत विचार है. क्योकि अधिकतर लोग शायद ‘उम्मीद’ / ‘अपेक्षा’ को मानवीय कमजोरी मान कर प्यार के बदले प्यार को ही पूर्णता मानते है.
khuda se
सच्ची इबादत और चाहत में खुदाई खुद-ब-खुद कदमों में झुकती है इसकी आरज़ू बेफजूल है और बेमानी है.

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