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मेरी अनसुनी फरियाद

Apni Aawaz
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खुदा से अब तुम भी कह दो,
अमन का पैगाम ले के आये
लड़ते है सब यहाँ पे
उन्ही का नाम लेके
अब वो ही आके
इनको समझाये
……………………
आके देखे!
किस कदर फैली है ‘बदअमनी’…
किस तरह फैला है ‘खून’…
बेगुनाह इंसानों का!
……………………
कहते तो है –
मजहबी बातें होती तो है इंसानों के लिए
मगर ये कत्ल करते है मासूमों का
अपने हाथों में मजहब लिए
राम के नाम पर
रहीम के नाम पर
कर जाते है ये काम
बेबसों को जिंदा तक जलाने का
……………………
ये महंत, ये मौलवी
जो कल तलक दिखाते थे राहेरास्त हमें
आज पेशा है उनका
‘गुमराह’ करने-कराने का
……………………
ऐ खुदा!
अब तो इस ज़मीं पर भी एक नजर डालों
मजहबी काफिर है ये
मजहबी तहज़ीब न समझेंगे
इनकी नजर
इन्ही की नजरों से उतारों.

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