Apni Aawaz
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उस दिन!
न कोई अस्मत लुटेगी,
न कोई वधू धू-धू जलेगी,
न सरेराह कोई अबला उठेगी,
न दरवाज़ों पे गालियाँ पुकार करेंगी,
न लाठियों के साए में बेगार चलेगी,
न खुले आम गोलियां हुंकार भरेंगी,
न मासूमों के हाथ तलवार बसेगी,
न धमाकों से बस्ती मसान बनेगी,
न आतंक से इंसानियत शर्मसार रहेगी,बे-खतर ज़िन्दगी जीने को,
क्या ऐसे ही……..?
एक अदद ‘सुबह’ की दरकार रहेगी!
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