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जिस समय स्वर्गीय राजीव गाँधी ने प्रधान मंत्री का पद ग्रहण किया था उस वक्त श्री प्रणब मुखर्जी ही प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे सशक्त प्रत्याशी थे मगर किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और एक बार फिर नेहरु परिवार के प्रत्याशी के नाम पर कांग्रेस को टूटने से बचाने के लिए सियासत की गई. जिसे विरोधी साज़िश कहते है. इससे ये तो साबित होता है की प्रणब मुखर्जी योग्य प्रत्याशी तो है पर ये बात अलग है अब जब इतनी देर में उनकी योग्यता को सम्मान मिल रहा है तो क्या अब वो इस लायक बचे है?
आज के परिवेश में सियासत और साजिश ये एक दूसरे के पूरक है. ये बात अलग है कि जब किसी अपने की योग्यता का सम्मान होता है तो दूसरे की नज़रों में ये साज़िश होती है, जब किसी तटस्थ का सम्मान होता है तो भले ही वो उस पद के योग्य न हो उसे विरोधियों द्वारा मन मार कर भी सराहा जाता है. और यदि किसी विरोधी पक्ष के समर्थित व्यक्ति को इसके लिए नामित भी करते है तो विरोधियो के लिए ‘ये एक समझदारी भरा कदम होता है” सत्ता पक्ष के लिए “मजबूरी” और जनता कि नज़र में “साज़िश”.
इसे साफतौर पर देखा और समझा जा सकता है की माननीय कलाम साहब बेहद योग्य और अच्छे इंसान थे पर वर्तमान भारत के राष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त नहीं थे. लोगो को ये अटपटा लग सकता है पर सत्य यही है कि कलाम साहब का सियासी इस्तेमाल किया गया. कमोबेश यही इस्तेमाल माननीय प्रतिभा पाटिल जी का भी किया गया. इनकी योग्यता पर कोई संदेह नहीं है पर वर्तमान राजनीति में, राजनीति न समझने वालो को कभी कभी अपने बीच खड़ा कर जनता के रोष को कम करने के लिए इस प्रकार के काम मन मार कर किये जाते है जो कि वाकई में साज़िश ही होती है. और उन्हें पद पर बैठा कर उनका कठपुतली की तरह इस्तेमाल किया जाता है. आज यही सच्चाई समझने के बाद माननीय कलाम साहब ने इस पद को दोबारा लेने से ठुकरा दिया क्योकि यदि इस पद पर रह कर देश के लिए कोई अच्छा काम या कुछ अच्छा करने कि गुंजाइश होती तो आदरणीय अब्दुल कलाम साहब इस पद को स्वीकार करने से कत्तई गुरेज़ न करते.
ये “साज़िश है या सम्मान” ये बात इस पर निर्भर करता है कि आप किस विचारधारा के है!
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