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“बलात” में बल तथा आततायी होने का भाव परिलक्षित होता है. अतएव बलात कुछ भी हासिल करना नैतिक अपराध तो है ही और सामंजिक नियमो के अंतर्गत भी ये अपराध होने के कारण कानूनन भी अपराध की श्रेणी में आता है. बलात हासिल करने की श्रेणी में बलात्कार सबसे घ्रणित, अमानवीय, क्रूरतम एवं जघन्य अपराध है. बलात्कार का अमानवीय होना ही ‘बलात्कार’ और ‘मानवाधिकार’ को परस्पर विरोधी बनाता है, जहाँ बलात्कार मानवाधिकार का हनन है वहीं मानवाधिकार मानव के कल्याण की भावना.
बलात्कार अथवा शारीरिक शोषण एक ऐसी अवस्था है जिसका दर्द पीड़ित के अलावा कोई भी नहीं महसूस कर सकता. यद्यपि पाषाण काल से चली आ रही सतत बलात्कार की परम्परा सदैव ही निंदनीय मानी गयी है मगर आज भी इसके पीड़ित उचित क़ानून अथवा न्याय की प्रतीक्षा में है. शायद ये फोरम पीडितो के मनोदशा का उल्लेख करने के लिए नहीं है वरना जिन लोगो ने भी इनका दर्द नजदीक से देखा है वे बलात्कार के दोषियों के लिए मौत की सजा से कम कोई भी सजा तजवीज़ नहीं करेंगे.
वैसे तो बलात्कार का नाम सुन कर ही रोंगटे खड़े हो जाते औए बलात्कारी के प्रति इतना आक्रोश उत्पन्न होता है की इनका उसी वक़्त कत्ल का देना चाहिए. पर किसी एक पक्ष को निरंकुश व क़ानून का बेजा फायदा उठाने से रोकने के लिए बलात्कारियो को तीन मुख्य वर्गो में बांटा जा सकता है
१. वो बलात्कारी जो रंगे हाथो पकड़ा गया हो,
२. वो व्यक्ति जो घटना स्थल पर पकड़ा तो गया हो पर घटना घटने के बाद,
इस दशा में दो परिस्थिति उत्पन्न होती है:-
० जिसमे पीड़ित जीवित है,
० जिसमे पीड़ित की मृत्यु हो गई है,
३. जिस व्यक्ति के खिलाफ पीड़ित ने शिकायत दर्ज कराई हो.
पहले वर्ग के बलात्कारी के ऊपर किसी भी तरह का केस नही चलना चाहिए इसका तुरंत सरे आम कत्ल कर देना चाहिए.
दूसरे वर्ग की पहली दशा में पीड़ित की गवाही मात्र पर ही बलात्कारी को अपील रहित मौत की सज़ा मुक़र्रर की जानी चाहिए.
दूसरे वर्ग की दूसरी दशा में घटना स्थल पर पकडे गए व्यक्ति पर केस दर्ज कर फास्ट ट्रैक सिस्टम के मेरिट आधार पर दोषी पाए जाने पर बलात्कारी को अपील रहित मौत की सज़ा मुक़र्रर की जानी चाहिए.
तीसरे वर्ग के दशा में
केस दर्ज कर फास्ट ट्रैक सिस्टम के मेरिट आधार पर मुक़दमे की सुनवाई होनी चाहिए.
किसी को ‘पावर’ शक्ति मिल जाने से उसके निरंकुश होने की सम्भावना बढ़ जाती है. क़ानून और शक्ति के दुरूपयोग की आशंका बनी रहती है. इसीलिए तीसरे वर्ग की दशा में केवल भावना से नहीं अपितु घटना के कारण, माहौल, चरित्र और ऐसी वे सभी बातें जो दुर्घटना का सबब बनती है उन पर गौर करना बेहद जरूरी होता है.
‘दहेज़ उत्पीडन’ कानून इस क्रम में ज्वलंत उदाहरण है की अब लोग इसे हथियार बना कर पैसे कमाने का जरिया समझने लगे है.
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