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महिला दिवस – एक दिन की सहानुभूति या सम्मान!!!

Apni Aawaz
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श्रृष्टि रचयिता ब्रम्हा के बाद श्रृष्टि सृजन में यदि किसी का योगदान हैं तो वो नारी का है. अपने जीवन को दांव पर लगा कर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल महिला को प्रदान किया हैं. हालाँकि तथा-कथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की ये शक्ति उसकी सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाती है.
आज समाज के दोहरे मापदंड नारी को एक तरफ पूज्यनीय बताते है तो दूसरी ओर उसका शोषण कर उसके देह की नुमाइश करतें नज़र आते है हद तो तब हो जाती है जब पेन, कापी, पेंसिल और बस्ते के विज्ञापन औरत की नग्न देह के माध्यम से किये जाते है. माना कि औरत के शरीर में पुरुष की अपेक्षा अधिक आकर्षण होता है मगर उसकी बेजा नुमाइश उसका दुरूपयोग है उस नारी जाति का अपमान है जिसे हम आदरणीय और पूज्यनीय मानते है.
बोल्ड साहित्य के नाम से ज्ञान परोसने वाले साहित्य और कार्यक्रमों का उद्देश्य औरतो का स्वत: शारीरिक समर्पण लेना ही है. वास्तव में सह-शिक्षा, उन्मुक्त यौनाचार, नारी मुक्ति आन्दोलन, स्त्री आरक्षण एवं सौन्दर्य प्रतियोगिताए ऐसे न जाने कितने कार्यक्रम नारी उत्थान की आड़ में होते रहते है जिसमे कुछ लड़कियां लुट कर तो कुछ चालाक बालाएं बच कर सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लेती है जबकि अधिकतर लड़कियां आयोजको के मकड़ जाल में उलझ कर अनचाहा जीवन व्यतीत करने को बाध्य हो जाती है. क्योकि नारी अपनी देह के माध्यम से कुछ समय के लिए अपना स्वार्थ तो सिद्ध कर सक्रती है मगर ताउम्र के लिए सम्मान नहीं पा सकती जबकि अपनी योग्यता के बल पर वो सर्वश्रेष्ठ बन सकती है.
नारी स्वतंत्रता का अर्थ उन्मुक्त यौनाचार नहीं अपितु पुरुषो के समान ही उस अधिकार को प्राप्त करना है जो बलात उत्पीडन व शोषण के बाद उन्हें नहीं मिलता है जबकि पुरुषो को उसके अनेको अवैध संबंधो को बनाने के बाद मात्र एक माफी से मिल जाता है. पुरुषो से कंधे से कन्धा मिला कर चलने वाली हर औरत समाज से वही सम्मान पाने की अधिकारिणी है जो समाज पुरषों को उसकी अनेको गलतियों के बाद भी पुन: एक अच्छा आदमी बनने का अधिकार प्रदान करता है.
नारी को आरक्षण की जरूरत नहीं है आवश्यकता है उन्हें उचित सुविधाओं की उनकी प्रतिभाओं और महत्वकांक्षाओ के सम्मान की और सबसे बढ़ कर तो ये है की समाज में नारी ही नारी को सम्मान देने लगे तो ये समस्या काफी हद तक कम हो सकती है.
महिला दिवस के अवसर पर मै सभी नारियों से विनम्र निवेदन करना चाहूँगा कि वो अपनी शक्ति को पहचाने और पुरुषो की झूठी प्रशंसा से बचे और सोच बदले कि वे पुरुष प्रधान समाज की नहीं बल्कि शक्ति प्रधान समाज का अंग है और शक्ति प्राप्त करना ही उनका लक्ष्य है और वो केवल एक दिन की सहानुभूति नहीं अपितु हर दिन अपना हक एवं सम्मान चाहती है.

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