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जब हमने नेतागिरी को निकृष्ट दर्ज़ा दे रखा है तो इस क्षेत्र में निकृष्ट लोग ही तो आयेंगे. तो उनसे उत्कृष्ट की उम्मीद क्यों?
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समाज के समझदार और पढ़े-लिखे लोग अपने बच्चो को डाक्टर, इन्जीनियर, चार्टर्ड अकाउंटटेंट, आई.ए.एस.,पी.सी.एस., एम.बी.ए., पी.ओ., लेक्चरर आदि ही बनाने में इच्छुक रहते है.
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यदि पढ़ाई के दौरान बच्चा अपनी किसी आवश्यकता के लिए अध्यापक अथवा प्रिंसिपल से तकरार करता है तो उसे घर पर डांट मिलती है कि “बहुत नेतागिरी सवार है वहां पढने भेजा था या लोफर या गुंडा बनने”.
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विडम्बना देखिये कि जिस क्षेत्र में लोग अपने बच्चो को भेजना पसंद नहीं करते उसी क्षेत्र में कार्यरत लोगो से तमाम सकारात्मक अपेक्षा रखते है.
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जबकि सब अच्छी तरह से जानते है कि ये क्षेत्र लोगो ने स्वयं उन लोफर गुंडों के लिए ही रिक्त छोड़ रखा है.
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थोडा बहुत राहत की बात ये है कि कुछ सभ्य और संस्कारी लोग जीवन में सफल होने के बाद अपने जीवन के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र में पदार्पण करते है और थोडा बहुत इस देश को गर्त में जाने की गति को मंद करने का प्रयत्न करते है. हालाँकि वे भी किसी स्वार्थवश ही आते है मगर मौजूदा लोगो से कुछ बेहतर होते है. यदि इस पतन गति को रोकना है तो इस क्षेत्र को साफ़ सुथरा बनाने के लिए पढ़े-लिखे और सभ्य-संस्कारी लोगो को आगे सुनियोजित कार्यक्रम के साथ आगे आना होगा.
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अच्छी और ओछी राजनीति का फर्क शायद यही है.
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अब जरा खुद सोचिये कि आज के राजनीतिज्ञों से उत्कृष्टता, नैतिकता और ईमानदारी की अपेक्षा बेमानी है या नहीं?
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