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“वैलेंटाइन डे” आखिर क्यूं – Valentine Contest

Apni Aawaz
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शायद होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस, बसंत और सावन जैसे त्यौहार और माह कम थे जो प्रेम के देश भारत में भी एक दिन “वैलेंटाइन डे” के नाम से बड़ा महत्वपूर्ण हो गया. लोग इसका बेसब्री से इंतज़ार करते है. कुछ प्रेम करने के लिए तो कुछ प्रेम की आग से अपनी रोटी सकने के लिए. जो भी हर बार की तरह इस बार भी ये मुआ दिन फिर आ गया और हम सब जुट गए इसको अपनी अपनी तरह से मनाने के लिए. प्रेम के लिए सभी के अपने अपने विचार होते है. अपना अपना प्रकट करने का तरीका होता है. मगर कौन सा तरीका दो के बीच रहेगा और कौन सा नुमाया किया जायेगा यह मतभेद शायद बहस का मुद्दा हो क्यों कि यथार्थ के नाम पर एक वर्ग नग्नता को भी मौलिक अधिकारों की श्रेणी के समकक्ष लाने पर तुला है पर एक बात साफ़ हैं उन सबको भी अपने लिए तो सच्चे, सरल और ईमानदार प्रेम की दरकार होती है और उसमे वे भी शालीनता कि अपेक्षा रखते है.
खैर जो भी हो प्रेम सचमुच एक ईश्वर प्रदत्त अद्भुत भावना व एहसास है जिसके लिए यहाँ तक कहा गया है कि “इन्तहा है ये कि बन्दे को खुदा करता है इश्क”

प्रेम की शक्ति के लिए कोई कहता है ” प्यार की राह दिखा दुनिया को रोके जो नफरत की आंधी”

तो किसी का मानना है कि “मोहब्बत ऐसी धड़कन है जो समझाई नहीं जाती”

इसी क्रम में मेरा भी मानना है कि प्रेम अमर है शायद कुछ ऐसे…….

बंद आखें
शरीर सर्द
नब्ज़ गायब
और धड़कने?
बेपरवाह!
ये मंज़र है
उसकी रुखसती का
दिल में जिसके
सिर्फ मोहब्बत धड़कती है

प्रेम के बदलते स्वरुप और धर्म का उस पर हावी होना इस बात का द्योतक है हमें प्रेम को फिर नए सिरे से जानने के लिए औए इसे समझने के लिए चिंतन करना होगा और सोचना होगा कि

इंसानियत के मज़हब पर,
क्यूं भारी है अपना अपना धर्म
आन बान और कट्टरता को,
क्यूं हथियार बना मेरा तेरा धर्म
“मिल-जुल” भी एक दुनिया है,
जीलो इसमें हर एक पल
प्यार मोहब्बत से भरा हुआ है,
इंसानियत का एक अकेला धर्म

…………………………सिर्फ प्रेम की खातिर.

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