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ईश्वर के अनेक नामों की तरह, ईश्वर प्रदत्त सर्वश्रेष्ठ उपहार प्रेम प्यार मोहब्बत इश्क श्रृष्टि के समस्त जीवों के लिए एक मात्र जीने का सच्चा आधार हैं. ‘निस्वार्थ भाव ही सच्चे प्रेम की पहचान हैं. प्रेम ने अध्यात्म से लेकर भोग विलास तक अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है. प्रेम की अपनी भाषा होती है यह न तो किसी पाठशाला का विषय हो सकती है और ना ही इसे किसी गुरु की दरकार होती है. प्रेम लेन-देन की परिपाटी का समर्थक है पर इसे अपने पास संजो के रखने की व्यवस्था नहीं है, इसे लेने के बाद आगे देने की परंपरा का निर्वाह करना होता है और यही विस्तार ही प्रेम का उद्देश्य है. प्रेम केवल विपरीत लिंगो के प्रति उपजे आकर्षण का नाम नहीं है अपितु प्रेम एक दूसरे के प्रति जगा विश्वास हैं जो प्रेम के विस्तार की गति को बढाने में सहायक होता है. प्रेम और आकर्षण के बीच भेद करना परम आवश्यक है, जहाँ प्रेम त्याग और समर्पण की भावना को जाग्रत करता हैं वहीँ आकर्षण में बंधा प्रेम लालसा और निज स्वार्थ की भावना से ओतप्रोत होता हैं . प्रेम ना तो सरहदों का मोहताज़ हैं और ना ही कोई दायरा इसका बंधन. प्रेम दो या अधिक के मध्य हो सकता है और सच्चा प्रेम केवल दूसरे के प्रति निस्वार्थ सेवा, समर्पण, त्याग, विश्वास और सम्मान के साथ उपजे भाव का नाम है इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं. प्रेम परोसने वाला व्यक्ति कभी भी अभावों में नहीं जीता, जब कोई सच्चा प्रेमी पंचतत्व में विलीन होता है और निष्ठुर, लालची, मतलबी जैसे लोगों तक की आँखे नम हो जाती है तो यही क्षण काफी होता है प्रेम की महत्ता दर्शाने को और यही उस व्यक्ति की सफलता और सम्पन्नता है.
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